स्वतंत्रता किसी थाल में
सजा कर नहीं मिलती
हासिल करना हो इसे
तो संघर्ष की सीधी चढ़नी है
मात्रभूमि के प्रति हो समर्पण
तो बलिदान को गले लगाना है
23 जनवरी का वह सुनहरा दिन
एक वीर योद्धा ने जन्म लिया
दुश्मनों का बल जिसने तोड़ा
हिला डाला नीव गहरा
दे गए स्नेह धरोहर
कर आलिंगन मौत को
तुम मुझे देना खून
में दूंगा तुम्हें आज़ादी
तोड़ डाली गुलामी की बेड़िया
लिख डाला इतिहास नया
साहस की चिंगारी जगा कर
रह गई गाथा अनसुलजी
क्षण भंगुर था जीवन जिनका
पथरीली राहों पर चलकर
वह शिखर पर लहरा गए
भारत का तिरंगा प्यारा
मातृभूमि का यह सपूत
एक नई राह दिखाकर
चला गया लंबे सफर पर
चूमता अंबर को तारा
कुछ अनकही बातें उनकी
कांटो भरे रास्तों पर फूल खिला गई
है उनको शत-शत नमन
जिसने भारत को आज़ादी दिलाई